भगवान उसे इस रंग-बिरंगी दुनिया में लाये तो सही लेकिन उसके आँखों को वो रौशनी देना ही भूल गए, जिससे वह इन रंगों को देख पाता। जिसकी जिन्दगी कभी आसान नहीं रही। जन्म से ही निराशा के काले बादल उसके जीवन में छाये रहे।
दृष्टिहिनता के कारण बचपन से ही उसने समाज में भेदभाव के व्यवहार का सामना किया।
जिसके जन्म लेते ही गांव के लोगों ने उसके माता-पिता को सलाह दी थी कि –
‘यह बिना आँखों का एक बेकार बच्चा हैं। जो आगे चलकर आप पर ही बोझ बनेगा।’
हम बात कर रहे है, आंध्र-प्रदेश में जन्मे श्रीकांत बोला (Shrikant Bholla) की। जिन्होंने हैदराबाद में Bollant Industries के नाम से एक कंपनी शुरू की है। यह एक ऐसी कंपनी है, जिसका मुख्य उद्देश्य अशिक्षित और अपंग लोगों को रोजगार देना, उपभोक्तोओं को पर्यावरण के अनुकूल Packaging Solutions प्रदान करना हैं।
श्रीकांत ने यह कार्य कर उन सभी बातों को झुठला दिया है, जिसको समाज एक दृष्टिहीन व्यक्ति द्वारा किये जाने को महज़ एक कल्पना मानता हैं। यही नहीं इस कंपनी का सलाना turnover 50 करोड़ से भी ज्यादा का है!
आज उनके पास कंपनी की चार उत्पादन ईकाइयां है – एक हुबली (कर्नाटक में), दूसरी नीजामाबाद (तेलंगना में), तीसरी भी तेलंगना के हैदराबाद में ही और चौथी, जो कि सौ प्रतिशत सौर उर्जा द्वारा संचालित होती हैं, आंध्र-प्रदेश के श्री सीटी में है। जो की चेन्नई से 55 किमी. दूर है।
गरीबी में बचपन – Childhood of Srikanth Bolla
उनका जन्म भी एक ऐसे निर्धन किसान परिवार में हुआ, जिसकी वार्षिक आय 20000 रू. (54रू. प्रति दिन) से भी कम थी| इसका मतलब यह है कि परिवार के सदस्यों को यह भी नहीं मालूम था कि उनको शाम का खाना नसीब होगा भी या नहीं|
जब श्रीकांत बड़े होने लगे, तो उनके किसान पिता उनको अपने साथ खेत में हाथ बटाने के लिए ले जाने लगे। लेकिन वे उनकी खेत में कोई मदद नहीं कर पाते। फिर उनके पिता ने सोचा शायद ये पढ़ाई में अच्छा करे। इसलिए उन्होंने उनका नामांकन गांव के ही स्कूल, जो की उनके घर से लगभग पांच किमी. दूर था, में करवा दिया।
अब वे रोज स्कूल जाने लगे। ज्यादातर स्कूल का सफर उन्हें रोज पैदल ही तय करना पड़ता था। वे ऐसे दो सालों तक स्कूल जाते रहे।
वे कहते है-
“स्कूल में कोई भी मेरी मौजूदगी को स्वीकार नहीं करता था। मुझे हमेंशा कक्षा के अंतिम बेंच पर बिठाया जाता था। मुझे PT की कक्षा में शामिल होने की मनाही थी। मेरे जीवन में वह एक ऐसा क्षण था, जब मैं यह सोचता था कि दुनिया का सबसे गरीब बच्चा मैं ही हूं, और वो सिर्फ इसलिए नहीं कि मेरे पास पैसे की कमी थी, बल्कि इसलिए की मैं अकेला था।”
जब उनके पिता को यह धीरे-धीरे अनुभव होने लगा कि उनका बच्चा इस स्कूल में कुछ सीख नहीं पा रहा है, तो उन्होंने श्रीकांत को हैदराबाद के ही दिव्यांग बच्चों के विशेष विद्यालय में भर्ती कर दिया। वहां श्रीकांत कुछ ही महीनों के अंदर अच्छा प्रदर्शन करने लगे। वे वहां सिर्फ चेस और क्रिकेट खेलना ही नहीं सीख गए बल्कि वे इन खेलों में निपुण भी हो गये। कक्षा में उन्होंने प्रथम स्थान प्राप्त किया। उतना ही नहीं कक्षा में उनके सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन के चलते उन्हें एक बार भारत के पूर्व राष्ट्रपति ए.पी.जे. अब्दुल कलाम के साथ Lead India Project में काम करने का भी अवसर प्राप्त हुआ।
स्कूल में अच्छा पदर्शन करने के बावजूद उन्हें ग्यारवीं कक्षा में विज्ञान विषय का चुनाव करने से मना कर दिया गया। श्रीकांत ने दसवीं की परीक्षा आंध्र-प्रदेश स्टेट बोर्ड से 90 प्रतिशत से ज्यादा अंकों के साथ उर्त्तीण की थी। लेकिन फिर भी बोर्ड का कहना था कि ग्यारवीं में दृष्टिहीन बच्चें विज्ञान विषय को नहीं चुन सकते हैं। श्रीकांत अपने मन में सोचते –
‘क्या ये सिर्फ इसलिए कि मैं जन्मांध हूं? नहीं, मुझे लोगों के देखने के नजरियें के द्वारा दृष्टिहीन बनाया गया है।‘
बोर्ड के द्वारा विज्ञान विषय को चुनने कि स्वीकृति नहीं दिये जाने के बाद, उन्होंने निश्चिय किया कि वे इसका विरोध करेंगे। वे कहते है –
“मैंने छः महीनें तक इसके लिए सरकार से लड़ता रहा और अंत में सरकार ने ही र्निदेश जारी कर मुझे ग्यारवीं में विज्ञान लेकर पढ़ाई करने कि अनुमती दे दी, लेकिन अपने बूते पर!”
इसके बाद क्या था। श्रीकांत ने दिन-रात एक कर अपने कठिन परिश्रम के बल पर बारहवीं की परीक्षा में 98 प्रतिशत अंक प्राप्त कर सबको आश्चर्यचकित कर दिया।
जब आईआईटी में दाखिला नहीं मिला – Rejected By IIT
जिन्दगी भी कभी-कभी मजाकिया ढ़ग से रूकावटों की नकल उतारने लगती है। खासकर उन लोगों के साथ जिनका कोई बड़ा उद्देश्य होता हैं। श्रीकांत के साथ भी ऐसा ही हुआ।
बारहवीं के बाद उन्होंने देश के लगभग सभी प्रतिष्ठित इंजिनीयरिंग कॉलेजों में नामांकन के लिए आवेदन किया लेकिन सभी ने आवेदन यह कह कर लौटा दिया कि ‘आप दृष्टिहीन है। इसलिए आप IIT की प्रतियोगी परीक्षा में नहीं बैठ सकते।‘ उसके बाद श्रीकांत ने आगे के रास्ते को बड़े ध्यान पूर्वक चुना और इंटरनेट के माध्यम से यह पता लगाने का प्रयास करने लगे कि क्या उनके जैसे लड़कों के लिए कोई Engineering Programs उपलब्ध हैं? इसी क्रम में उन्होंने अमेरीका के कुछ प्रतिष्ठित इंजिनीयरिंग कॉलेजों में आवेदन किया। जिसमें चार कॉलेजों ने उनका आवेद स्वीकार भी कर लिया। ये कॉलेज थे – MIT, Stanford, Berkeley और Carnegie Mellon उन्होंने MIT को चुना और वे उस स्कूल के इतिहास में पढ़ने वाले पहले अंतराष्ट्रीय दृष्टिहीन विद्यार्थी बन गये। प्रारम्भ में उन्हें वहां भी कई दिक्कतों का सामना करना पड़ा, लेकिन धीरे-धीरे उनके प्रदर्शन में सुधार आने लगा।
असक्षम लोगों का सहारा बने – Social Entrepreneur
जब उनकी स्नातक की पढ़ाई पूरी हो गई तो वे अमेरीका में अपने सुनहरे भविष्य को छोड़, भारत लौट आये। यहां आकार उन्होंने शारीरिक रूप से कमजोर लोगों के लिए एक सेवा प्रारम्भ कि जिससे उन लोगों का पुनर्वासन हो सके, उनको प्रोत्साहित व मदद की जा सके और सबसे बड़ी बात, समाज में उनको एक सम्मानजनक स्थान दिलाया जा सके। इस तरह श्रीकांत ने लगभग 3000 लोगों की मदद की लेकिन जब उन्हें ये महसूस हुआ कि अब ये लोग तो सामान्य जिन्दगी जीने लगे लेकिन ये अपनी प्रतिदिन कि जरूरतों के लिए किस पर आश्रित रहेगें? उनके रोजगार का क्या होगा? इसलिए उन्होंने Bollant Industries की स्थापना कि जो अभी लगभग 200 से ज्यादा दिव्यांग लोगों को रोजगार प्रदान कर उन्हें भी सम्मान से जीवन जीने का अवसर दे रही हैं।
हर इंसान को जीवन में विपरीत परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है। वह सपने देखता है, और उसे धरातल पर उतारने के लिए परिश्रम का सहारा लेता है। हालांकि यह दूसरी बात है कि बस कुछ ही इंसान सफलता की उस लकीर को पार कर पाते हैं, जिसके बाद दुनिया उनको सम्मान की दृष्टि से देखती है, और श्रीकांत भी उन्हीं लकीर पार करने वालों में से एक है।
उन्होंने अपंग लोगों के लिए कुछ रचनात्मक करने के दृढ़ संकल्प से दुर्भाग्य की काली घटाओं को हटा अपने आपको साबित किया। श्रीकांत जैसे लोग हमेशा दुनिया को यह साबित करके दिखाते है कि दृढ संकल्प के दम पर कुछ भी किया जा सकता है| हम श्रीकांत जैसे लोगों को सलाम करते है|
“लोगों के प्रति सहानुभूति दिखाओ जिससे वे प्रोत्साहित हो, समृद्ध हो सके । अपने जीवन में लोगों को शामिल कर अकेलेपन और उदासीनता को समाप्त करो और अंतिम, कुछ अच्छा करो, वह फिर तुम्हारे पास ही लौटकर आएगा।”
– श्रीकांत बोला
यह लेख मुकेश पंडित द्वारा भेजा गया है| मुकेश MotivationalStoriesinHindi.in नाम से एक ब्लॉग चलाते है| मुकेश के इस अद्भुत लेख के लिए, हैप्पीहिंदी.कॉम की तरफ से मुकेश को बहुत बहुत धन्यवाद|
Very nice sir. Aapki life aapki story a very inspiring for all people
SUPER SIR I INSPIRED FROM YOU
nice post manish sir
Very inspirational story.First time I read story of this time …only blind by eyes not by will power.great work
GREAT MOTIVATIONAL TRUE STORY
Hi,
Very Inspirational story.
Thanks for sharing.
Regards
shajeer
very nice story of blind man……….
Inspiring… Salute hai..
The vdo also available of Shrikanta ji that also I enjoyed in the last year.Its really a inspirational and true experience of Shreekant ji Life.Salute him.
very nice story sir i like it
Heart touching story……fhabulas
HEART TACHING VERY SUPARB
Adbhut, Akalpniya…….Ascharya……..Duniya ka 8th Ajuooba……….Asa Ho sakta hai , I dont believe it……..? SHRIKANT JI KO JITNA BHADHAYI……DI JAYE KAM HAI…………….OR HUME PROUD HAI ASE …….SPECIAL PERSON SE ……hum inke aage kuch bhi nahi…………..pradeep kumar mali, 40, bherugarh, Bada Bazar, dewas (M.P.) 9826461771
most incredible story
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God se dua karta hui ki aap ko aur great baniye thanku sir
Jinko ye smaaj nagwaar sajhta hai na wo iss smaaj ko aaena dikhate hai ki dekhiye mai nagawaar nahi hu. Bhaut achhi story hai