कार्टून कीड़े – Cartoon Kide


मैंने पहले भी “बचपन” से सम्बंधित अपने लेख “जीने दो यार” में लिखा है कि – अगर पहले की तरह आज भी कोई ऐसा सिस्टम होता जिसमें भगवान खुश होकर प्रकट होते और हमसे कहते कि तुम जो चाहो वो मांग सकते हो तो मैं भगवान से अपना बचपन वापस मांगता| क्योंकि बचपन का समय ही हमारी जिंदगी का सबसे अच्छा समय होता है और स्कूल हमारी सबसे पसंदीदा जगह| हम अपने बचपन को याद करके ही इतने रोमांचित हो जाते है कि ऐसा लगता है जैसे सारे दुख दर्द एक पल में दूर हो गए हों|

जब मैं कभी कभी मेरे सुपरफास्ट मन को भूतकाल में बचपन में ले जाता हूँ तो मुझे बहुत सारे अलग अलग तरह के खेल एंव उस खेलों को खेलते हुए बहुत सारे बच्चे याद आते है|

लेकिन मैं जब आज कल के टेक्नो फ्रेंडली बच्चों को देखता हूँ तो “डोरेमोन- नोबिता (Cartoon serial)”, मोबाइल गेम्स एंव कुछ अजीब से दिखने वाले कार्टूनों के आलावा कुछ याद नहीं आता|

जब बच्चे टीवी पर कार्टून देख रहे होते है तो वे उस “डोरेमोन(Cartoon serial)” में इतना खो जाते है कि उनको कुछ पता ही नहीं चलता कि उनके पास में क्या चल रहा है| इसलिए उन्हें कार्टून कीड़ा भी कहा जा सकता है|और पता नहीं टीवी चैनल वालों को भी क्या हो गया है जो दिनभर एक ही कार्यक्रम चलाते रहते है, शायद टीआरपी का चक्कर है| दिन में शायद ही कोई ऐसा समय होगा जब आपको एक भी चैनल पर डोरेमोन(कार्टून सीरियल) न मिले, कहीं न कहीं पे तो आपको नोबिता (Cartoon Character) रोता हुआ मिल ही जाएगा और उसके आसुओं की बाढ़ भी|

बड़ों को बच्चों की जिद के आगे घुटने टेकने ही पड़ते है और उनको मजबूरी में क्रिकेट मैच, न्यूज़ या फिर सीरियल की जगह नोबिता के आंसुओं की बाढ़ देखनी पढ़ती है| “मोटू-पतलू (Motu Patlu)”, “ओग्गी एंड द कॉकरोच (Oggy and Cockroach)” पकड़म पकड़ाई (Pakdam Pakdai Cartoon) अदि कार्टून सीरियल के आने के बाद बड़े लोगों का थोड़ा बचाव हो गया है क्योंकि अब उन्हें “डोरेमोन” को कम देखना पड़ेगा और थोड़ी बहुत कॉमेडी भी हो जाएगी|

कार्टून या टीवी कोई बुरी चीज नहीं है इससे बच्चों की रचनात्मकता बढती है लेकिन “अति सर्वत्र वर्जयेत्” यानि कोई बात जरूरत से ज्यादा नहीं होनी चाहिए। जरूरत से ज्यादा कार्टून एंव टीवी देखने की लत ने बच्चों की जीवनशैली बदल दी है और इसी का नतीजा है कि बच्चों को खाना तभी हजम होता है जब टीवी चलता है| आजकल छोटी उम्र में नज़र का चश्मा लगना आम बात हो गयी है|

आज की टेक्नोलॉजी एंव सुपरफास्ट जीवनशैली का असर हर क्षेत्र में देखने को मिल जाएगा| बच्चे हो या बड़े, टेक्नोलॉजी सभी पर हावी है|इस टेक्नोलॉजी के हजारों फायदे है पर कुछ सैकड़ो नुकसान भी है जो उन हजारों फायदों से ज्यादा महत्वपूर्ण है| 

पहले हर गली में क्रिकेट खेलते हुए बच्चे नजर आ जाते थे लेकिन आज कल ऐसी गलियों की संख्या कम हो गई है क्योंकि ज्यादातर खिलाड़ी व्हाट्सएप पर व्यस्त है|

पहले हम पकड़म पकड़ाई खेलते थे लेकिन आज बच्चे पकड़म पकड़ाई के कार्टून वर्जन (Pakdam Pakdai Cartoon) को देखकर ही खुश हो जाते है|

हमने जानवरों और पक्षियों की प्रजाति को लुप्त होते देखा है लेकिन टेक्नोलॉजी के इस ज़माने में बचपन के छुपम-छुपाई, पकड़म पकड़ाई और सतोलिया जैसे शानदार सैकड़ों खेल भी लुप्त हो रहे है या यूँ कह सकते है कि वो पुराना बचपन ही लुप्त हो रहा है|

आज से 15-20 वर्षों बाद छुपम-छुपाई जैसे खेल केवल कहानियों में ही सुनने को मिले तो कोई आश्चर्य नहीं होगा| हो सकता है कि इन खेलों का भी कोई ऑनलाइन वर्जन तैयार हो जाए और बच्चे ऑनलाइन छुपम छुपाई या सतोलिया खेले|

 


अभिषेक राजस्थान से हैं और वे हैप्पीहिंदी.कॉम पर बिज़नेस, इन्वेस्टमेंट और पर्सनल फाइनेंस के विषयों पर पिछले 4 वर्षों से लिख रहे हैं| उनसे [email protected] पर संपर्क किया जा सकता हैं|

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